नारी विदुला सी महतारी,
अरिदल पर पड़ जाती भारी।
बनकर के तलवार देश की,
करती मारो मार देश की।
धरकर रूप महाकाली का,
लेकर दोनों हाथ दुधारी।
कूद पड़ी जब महासमर में,
बेटा अपना बांध कमर में!
भगदड़ मच गई शत्रु दल में,
अतुलित नारी साहस बल में!!

किसी तरह बलहीन नहीं है,
सबला है यह दीन नहीं है।
देश प्रेम का भाव हमेशा,
अन्तस् में अविरल बहता है।
तुम सबला हो वीर प्रसू हो,
कौन तुम्हें अबला कहता है!!

-समर्पित (‘राष्ट्र-उत्थान’ महाकाव्य से)

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