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यह देश जिन्दा रहेगा तो धरती पर मानवता जिन्दा रहेगी। जो लोग अपने देश और धर्म पर बलिदान दे देते हैं, क्या उन्हें अपने जीवन के मूल्य का अनुमान नहीं होता? वास्तव मे ं जो अपने आदर्शों के लिए जीवन की आहुति दे देते हैं, जीवन का मूल्य तो वही जानते हैं। और वे ही उन आदर्शों की कीमत जानते हैं। तभी तो देश के विचार और आदर्शों की रक्षा करने के लिए अपने प्राण देकर भी वे इसे सस्ता सौदा समझते हैं। नेता जी ने कहा- हम रहें न रहें, यह देश रहना चाहिए। देशभक्तों के सामने एक आदर्श रहा, जिसने उन्हें सर्वदा शक्ति दी। वे हँसते हँसते बलिदान देते गए। उनके सामने फांसी का फंदा था, वे बेडि़याँ खनकाते, गाते गाते फांसी पर चढ़ गए। उनके सामने विष का प्याला था, उन्होंने अमृत समझकर उसका पान किया और आँखें मूंद लीं। गोलियाँ थीं, अपना सीना आगे कर दिया। कहने में यह कविता कितनी अच्छी लगती है, पर जिन लोगों ने इसका भाष्य लिखा उन लोगों के बारे में हम क्षण भर आँखें बंद कर चिन्तन करें तो ऐसा लगता है जैसे वे किसी अलौकिक दुनिया के प्राणी थे। कितनी विडम्बना है कि इस देश मेें गरीब जनता की खून पसीने की कमाई से ऐश करने वाल