आँख वाले तो बहुत हैं देखता कोई नहीं।
जानते तो खूब हैं पर मानता कोई नहीं।।

पांव भी आगे बढ़े हैं मन में है उत्साह भी,
कारवां तो बन गया पर रास्ता कोई नहीं।।

बेवजह तो पूछते रहते हैं सारे हाल चाल,
वक्त पड़ने पर कभी भी पूछता कोई नहीं।।

जब कभी हमने पुकारा-- कह दिया तुम कौन हो!
हमने पूछा कौन हैं हम -कह दिया कोई नहीं!!

टूटते हैं रोज रिश्ते स्वार्थ के तो बेतरह,
पर कभी निःस्वार्थ रिश्ता टूटता कोई नहीं।।

है कोई नाराज तो उसको मना लो दौड़कर,
बेवजह अपनों से यूं ही रुठता कोई नहीं।।

गर तुम्हें कोई गिला हो तो बता दो खोलकर,
हम समर्पित हैं हमें तुमसे गिला कोई नहीं।।
            -समर्पित, 7 मई, 2011

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