शेष हैं कुछ काम अब भी।

चल जला पुरुषार्थ का दीपक, अरे बन राम अब भी।

शेष हैं कुछ काम अब भी।।


तारकों का पथ प्रदर्शन छोड तू खुद चॉंद-सा बन।
राह है तेरे पगों में, सामने है लक्ष्य पावन।
ठोकरों पर मत गिला कर, मुड़ न वापस तिलमिला कर,
कण्टकों को कर तिरस्कृत पग बढ़ा अविराम अब भी!!
शेष हैं कुछ काम अब भी!

कण्टकों में फूल-सा खिल, औ’ तिमिर में दीप-सा जल।
शिव बना खुद को पथिक तू, संकटों का पी हलाहल।।
ऑंधियों में जिन्दगी है, रे अगर तू आदमी है।
तो समझ ले जिन्दगी में हेय है विश्राम अब भी!!
शेष हैं कुछ काम अब भी!!

रात की काली सतह पर, लिख अरे कुछ लेख अब भी।
शेष है सुबह का तेरे, रक्त से अभिषेक अब भी।
सुबह की आशा यही है, राह की भाषा यही है,
हो ‘समर्पित’ चल-चला-चल, राह पर निष्काम अब भी।
शेष हैं कुछ काम अब भी!!

 

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