सिद्धि के लिए सच्चे साधन
सिद्धि के लिए सच्चे साधन -स्वामी श्रद्धानन्द जी यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य, वर्तते कामचारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति, न सुखं न परां गतिम्।। गीता 16/3 शब्दार्थ- (यः) जो मनुष्य, (शास्त्रविधिम्) शास्त्र की विधि एवं आदेश को (उत्सृज्य) छोड़कर (कामचारतः वर्तते) अपनी इच्छानुकूल आचरण करता है, (सः सिद्धिं न अवाप्नोति) वह न तो सिद्धि या सफलता को प्राप्त कर सकता है (न सुखम्) न सुख को, (न परां गतिम्) और न मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। उपदेश- जन्म दिन से ही बालक के निर्माण साधनों की आवश्यकता को न केवल आर्य ऋषियों ने ही अनुभव किया है, बल्कि संसार के सब विद्वानों ने संस्कारों की महानता के आगे सिर झुकाया है। जो मनुष्य संस्कार सम्पन्न नहीं हैं, वह मनुष्य जीवन के उच्च आदर्श की तरफ एक कदम भी नहीं बढ़ा सकता। दुःखों से छूट कर शान्त अवस्था को प्राप्त करना, मनुष्य जन्म का परम उद्देश्य है। किन्तु दुःखों से मनुष्य छूट कैसे सकता है? जब तक कि सुख प्राप्ति के साधनों का उसे ज्ञान न हो। इसलिए कृष्ण भगवान् ने सिद्धि, सुख और मुक्ति का क्रम से वर्णन किया है। किन्तु सिद्धि के लिए साधनों की आवश्यकता है...